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Monday, December 24, 2018

December 24, 2018

30,000 से ज्यादा फर्जी PUBG अकाउंट बैन, चीट कोड इस्तेमाल करने का आरोप


पॉप्युलर बैटल गेम  PUBG के निर्माताओं ने Vikendi snow map के रिलीज के बाद 30,000 से ज्यादा फर्जी अकाउंट बैन कर दिए हैं। इन यूजर्स पर चीट कोड का इस्तेमाल करने का आरोप है। गेम कॉर्प्स ने भी कई ऑनलाइन गेम्स पर बैन लगाया था। ऐसे PUBG प्लेयर्स के अकाउंट पर बैन लगाया गया है, जिन्होंने ऑनलाइन मैचेज के दौरान रडार हैक चीट का इस्तेमाल किया। रडार हैक के इस्तेमाल के जरिए प्लेयर विरोधी खिलाड़ी की पोजीशन देख सकता है। इसके लिए किसी सेकेंड मॉनीटर की जरूरत होती है या फिर किसी स्मार्टफोन ऐप से भी ऐसा किया जा सकता है। इस बारे में कई यूजर्स ने ऑनलाइन फोरम पर शिकायतें दर्ज की हैं। इसके बाद गेम मेकर्स ने 30 हजार से ज्यादा अकाउंट्स पर बैन लगा दिया है। हालांकि, इससे बैन की जद में कुछ ऐसे खिलाड़ी भी आए हैं जिनके बारे में निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने चीट कोड का इस्तेमाल किया है। 

Saturday, October 13, 2018

October 13, 2018

पांचवी फेल तांगे वाले से MDH मसालों तक का सफ़र dharampal gulati success story .


किसी भी दुनियां का बेताज बादशाह बनना कोई आम बात नही है. इसके पीछे कड़ी महनत, कड़ा संघर्ष और ख़राब अनुभव होता है और जब बात हो दुनियां भर के रसोई घरो की तो उस बादशाही को बरकरार रखना और भी मुश्किल हो जाता है. 68 साल पहले बनी एक कंपनी हमारे खाने के स्वाद का ख्याल रखती है. ये कंपनी 60 से भी अधिक तरह के मसाले तैयार करती है और उसका दुनियां के कई देशो में निर्यात करती है. अब आप समझ ही गए होगे कि हम बात कर रहे है MDH कंपनी की जिसके मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी/ dharampal gulati को मसालों की दुनियां का बेताज बादशाह कहा जाता है.
भारत में रह कर शायद ही आपने इनके बनाये मसालों का स्वाद ना चखा हो. जाने अनजाने ही सही अपने जरुर धर्मपाल जी के मसाले अपने खाने में इस्तेमाल किये होंगें. लेकिन यहाँ तक पहुचने के लिए धर्मपाल जी को सालो नही बल्कि पूरी जिंदगी लग गई. आइये थोडा और विस्तार से जानते है उनकी इस रोचक और मसालेदार जिंदगी के बारे में.

धर्मपाल गुलाटी की सफलता की कहानी DHARAMPAL GULATI BIOGRAPHY IN HINDI

महाशय धर्मपाल गुलाटी जी का जन्म 27 मार्च 1923 को सियालकोट में हुआ था. सियालकोट अब पाकिस्तान में है. उनका परिवार बेहद सामान्य परिवार था. पिता का नाम महाशय चुन्नीलाल और माता का नाम चनन देवी था जिनके नाम पर दिल्ली  के जनकपुरी में चनन देवी हॉस्पिटल भी है. धर्मपाल जी का पढाई- लिखाई में बिलकुल भी मन नही लगता था जबकि उनके पिता जी चाहते थे कि वह खूब पढ़े.
लेकिन ये बात उनके पिता जी समझ चुके थे कि dharampal  जी का मन अब आगे पढने का नही है जैसे तैसे उन्होंने चौथी कक्षा पास की और पांचवी में वह फेल हो गए और स्कूल छोड़ दिया. इसके बाद उनके पिता जी ने उन्हें एक बढई की दुकान पर काम सिखने के लिए लगा दिया.  लेकिन धर्मपाल जी का मन नही लगा और उन्होंने वो काम भी नही सीखा. 15 वर्ष की अपनी जिंदगी में वो 50 काम कर चुके थे. उन दिनों सियालकोट लाल मिर्च के बाज़ार के लिए जाना जाता था तो उनके पिता ने उन्हें एक मसाले की दुकान खुलवा दी. धीरे धीरे काम अच्छा हो गया और खुब चलने लगा लेकिन तब तक भारत अपनी आज़ादी के लड़ाई के करीब पहुँच गया था और भारत पाकिस्तान का विभाजन उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गया.
आज़ादी के लड़ाई के बाद सियालकोट पाकिस्तान के हिस्से चला गया और dharampal  जी के परिवार का वहां रह पाना मुश्किल हो गया. लिहाजा वह सब कुछ छोड़ छाड़ कर दिल्ली के करोलबाग में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रहने लगे. अपना घर बार और रोजगार छोड़ कर वह दिल्ली आये तो उनकी जेब में 1500 रूपये थे. दिल्ली में कोई रोजागर न होने के कारण उन्होंने जैसे-तैसे एक तांगा ख़रीदा और वो चलाने लगे हालाकि इसमें भी उनका मन नही लगा और 2 महीने तांगा चलाने के बाद वो भी छोड़ दिया.
अब धर्मपाल जी एक बार फिर बेरोजगार हो गए. इसी बीच उनके मन में मसाले बनाने का ख्याल आया जिसमे उनका मन लगता था और उन्होंने अपना काम करने की सोची. वह बाहर से सूखे मसाले खरीदते, उन्हें घर पर पिसते और बाज़ार में बेचते. धीरे धीरे काम बढ़ने लगा. क्योकि उनकी ईमानदारी मसालों को गुणवत्ता को बनाये रखा था.  अब मसाले पिसने का काम घर पर करना मुश्किल होने लगा तो उन्होंने बाज़ार से मसाले पिसवाना शुरू किया लेकिन मसाला पिसने वाला उनके मसाले में मिलावट करने लगा  जिससे  धर्मपाल जी को बहुत दुख हुआ. अब उन्होंने खुद मसाला पिसने की फैक्ट्री लगाने की सोची और दिल्ली के कीर्तिनगर में अपनी पहली मसाला फैक्ट्री शुरू की. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड कर नही देखा. और MDH एक ब्रांड बना और धर्मपाल जी आज उसकी पहचान है
आज रसोई घर में हम धर्मपाल जी की फैलाई खुशबु महसूस करते है और उनके बनाये मसाले के स्वाद से भी वाकिफ है  इनकी जिंदगी को जान कर यही लगता है कि दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत के दम पर आदमी कुछ भी कर सकता है
October 13, 2018

जानिये स्टॉक मार्केट और शेयर मार्केट के बारे में सब कुछ


आज हम आपको स्टॉक और शेयर मार्किट के बारे मे सभी बेसिक जानकारी बड़े ही सरल शब्दों मे बतायेंगे. आपने स्टॉक मार्केट के बारे में सुना तो होगा ही लेकिन क्या आप जानते है ये स्टॉक मार्केट क्या है और कैसे काम करती है. साथ ही साथ IPO, DEMAT ACCOUNT, TRADING ACCOUNT, BSE, NSE, SENSEX, NIFTY, DIVIDEND, CAPITAL APPRECIATION के बारे मे भी हम आपको बतायेंगे.



ABCD OF STOCK MARKET स्टॉक मार्केट की बेसिक जानकारी.

किसी कंपनी को अपना बिजनेस बढ़ाने और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लक्ष्यो को पूरा करने के लिये पैसो की जरूरत होती है. ये पैसा या तो कंपनी उधार लेती है जिसे डेब्ट फाईनेंसिंग (debt financing) कहते है. ये पैसा उन्हें किसी बैंक से मिल सकता है, लेकिन इस पैसे को जब वे उस बैंक को वापिस करते है तो उन्हें इसपर ब्याज देना होता है. पैसा उठाने का एक और माध्यम है इक्विटी फाईनेंसिंग (equity financing). स्टॉक मार्किट से पैसा उठाना इसी के अंतर्गत आता है. स्टॉक मार्किट से पैसा उठाना यानि के लोगो से पैसा लेना. इस माध्यम से ना तो कंपनी को लोगो को पैसा वापिस देना पड़ता है ना ही उन्हें लोगो को कोई ब्याज देना पड़ता है. इसके बदले कंपनी निवेशको को अपनी कंपनी मे हिस्सेदारी देती है और उन्हें अपने साथ भागीदार बना लेती है. पैसा लगाने वाले लोग स्टॉक मार्किट से कंपनी के शेयर खरीदते है और कंपनी के लाभ और हानि के हिस्सेदार बन जाते है. इस प्रकार स्टॉक मार्किट किसी भी कंपनी के लिये एक ऐसा माध्यम बन जाता है जहा से वे पैसा उठा सकते है.

WHAT IS SHARE MARKET AND HOW IT WORKS शेयर मार्केट क्या है और ये कैसे काम करती है 

स्टॉक मार्केट को ही शेयर मार्केट कहते है, कंपनी के शेयरों के अतिरिक्त यहाँ बांड्स, म्यूच्यूअल फंड्स का भी व्यापार होता है.

शेयर मार्केट दो तरह के होते है TYPES OF SHARE MARKET

  •  प्राइमरी शेयर मार्केट PRIMARY SHARE MARKET


इस मार्केट मे कंपनी पैसा उठाती है, अपने आपको शेयर बेचने के लिये स्टॉक एक्सचेंज मे रजिस्टर करवाती है.जब कंपनी पहली बार लोगो से पैसा उठाती है तो उसे IPO (INITIAL PUBLIC OFFERING) कहा जाता है. IPO के वक्त कंपनी को अपने बिजनेस, स्टॉक्स के दामो, प्रमोटर्स और फाइनेंशियल जानकारी प्रदान करनी पड़ती है. इसमे लेनदेन सीधे कंपनी और लोगो के बीच होता है. लोगो द्वारा कंपनी के जीतने शेयर ख़रीदे जाते है उसी अनुपात मे उन्हें कंपनी की भागीदारी भी मिलती है. 

  • सेकेंडरी शेयर मार्केट SECONDARY SHARE MARKET


इस मार्किट में लोग अपने शेयर खरीदते और बेचते है.IPO मे सिर्फ कंपनी से शेयर खरीदे जा सकते है उन्हें बेचने के लिये ये जरूरी है की पहले वो स्टॉक स्टॉक एक्सचेंज मे लिस्ट हो जाये. IPO मे जब सभी शेयरों का आबंटन हो जाता है तो कुछ दिन बाद ही वो स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हो जाता है. स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होने के बाद आप IPO में खरीदे हुए शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर बेच सकते हो. यहाँ आप चाहे तो दूसरे इच्छुक निवेशक जो कंपनी मे हिस्सेदार बनना चाहते है उनको अपने शेयर बेच सकते है. स्टॉक एक्सचेंज मे ख़रीदे और बेचे हुये शेयरो मे कंपनी शामिल नहीं होती, यहाँ लोग अपने शेयरो को खरीदते और बेचते है. आम तौर पर, ये लेनदेन ब्रोकर के माध्यम से किए जाते हैं.

DEMAT ACCOUNT & TRADING ACCOUNT

शेयरो को खरीदने और बेचने का सारा काम ऑनलाइन ही होता है. IPO हो  या चाहे स्टॉक एक्सचेंज दोनों मे शेयर खरीदने के लिये आपको किसी स्टॉक ब्रोकरेज फर्म के साथ DEMAT अकाउंट खोलना होगा, स्टॉक मार्केट मे निवेश करने के लिये DEMAT ACCOUNT और TRADING ACCOUNT होना जरूरी होता है. स्टॉक ब्रोकरेज फर्म मध्यस्थ होते है और इनके सहारे शयरो को बेचा और ख़रीदा जा सकता है. ख़रीदे गये शेयर DEMAT ACCOUNT मे आते है, यहाँ से आप शेयरों को खरीद और बेच नहीं सकते. शेयरों को खरीदने और बेचने के लिये TRADING ACCOUNT की जरूरत होती है. खरीदने के बाद ये शेयर DEMAT ACCOUNT मे चले जाते है. जब आप DEMAT ACCOUNT खोलते है तो साथ ही में TRADING ACCOUNT भी खुल जाता है. इन्हें खुलवाने के लिये कुछ डाक्यूमेंट्स लगते है जैसे की आधार कार्ड या वोटर आईडी, पेन कार्ड, कैंसिल चेक या बैंक पासबुक की कॉपी. 

NSE & BSE 

ये दोनों भारत के मुख्य स्टॉक एक्सचेंज है. NSE (NATIONAL STOCK EXCHANGE) और BSE (BOMBAY STOCK EXCHANGE). निवेशक अपने शेयरो की खरीद और बिक्री यही करते है. BSE मे NSE से ज्यादा कंपनिया लिस्टेड है. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज मे लगभग 5000 कंपनिया लिस्टेड है जबकि NSE मे 1500 से ज्यदा कंपनिया लिस्टेड है. स्टॉक एक्सचेंज मे लिस्टेड सभी कंपनियां या तो BSE या तो NSE मे लिस्टेड है. 
स्टॉक मार्केट का पूरा प्रदर्शन आमतौर पर विभिन्न स्टॉक मार्केट इंडेक्स (निर्देशांक) के प्रदर्शन में ट्रैक और प्रतिबिंबित होता है। स्टॉक इंडेक्स स्टॉक के चयन से बना है जो यह दर्शाता है कि समग्र रूप से शेयर कैसे प्रदर्शन कर रहे हैं। चूंकि हजारों कंपनी स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हैं, इसलिए एक समय में बाजार प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए प्रत्येक स्टॉक को ट्रैक करना वाकई मुश्किल है। इसलिए, एक छोटा सा नमूना लिया जाता है जो पूरे बाजार का प्रतिनिधि होता है। इस छोटे नमूने को इंडेक्स कहा जाता है
स्टॉक मार्केट के दो प्रमुख इंडेक्स
ये दो प्रमुख इंडेक्स SENSEX और NIFTY है. सेंसेक्स BSE का इंडेक्स है और NIFTY NSE का. सेंसेक्स  को BSE 30 भी कहा जाता है, ये इंडेक्स अपने अपने सेक्टर की प्रमुख रूप से स्थापित 30 प्रमुख कंपनियों से बना है. वही NIFTY को NIFTY 50 भी कहते है, इसमें अपने अपने क्षेत्रो की बेहतर और अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाली कंपनियां शामिल है.
NIFTY और SENSEX के परफॉरमेंस से स्टॉक मार्केट के हाल को जाना जा सकता है. जैसे मान लीजिये की आज सेंसेक्स या निफ्टी 28000 है और अगले दिन बढ़कर ये 2850 हो जाये तो हम कहते है की स्टॉक मार्किट का प्रदर्शन अच्छा है और शेयरो के दाम बढ़ गये लेकिन यदि अगले दिन ये घट कर 2750 हो जाये तो इसका मतलब की कंपनियों की स्थिति अच्छी नहीं है और शेयर के दाम घट गये.

स्टॉक मार्केट में निवेशक किस तरह लाभ कमाते है.  HOW INVESTORS EARN IN SHARE MARKET OR STOCK MARKET

स्टॉक मार्केट में निवेशक दो तरह से लाभ कमाते है, पहला DIVIDEND और दूसरा CAPITAL APPRECIATION. 

DIVIDEND

जब एक कंपनी द्वारा (आमतौर पर सालाना रूप से) अपने शेयरधारकों को अपने मुनाफे से नियमित रूप से एक हिस्सा दिया जाता है तो उसे DIVIDEND कहते है. वैसे शेयर धारको को DIVIDEND देना है या नहीं ये कंपनी की अपनी मर्जी पर आधारित होता है.

CAPITAL APPRECIATION

ये स्टॉक मार्किट में पैसा कमाने का मुख्य स्त्रोत होता है. जब किसी कंपनी के शेयर के दाम बढ़ जाते है तो उससे उसके निवेश का मूल्य भी बढ़ जाता है. मान लीजिये कि चार साल पहले आपने किसी कंपनी का शेयर 50 रूपए मे ख़रीदा और आज इस शेयर की कीमत 450 रूपए है तो आपके शेयर मे बढ़ी 400 रूपए की कींमत CAPITAL APPRECIATION कहलायेगी.

Thursday, October 11, 2018

October 11, 2018

जानिए क्यो मनाए जाते है नवरात्रि। क्या है नवरात्रो का दशहरे से संबंध

भारत मे कई सारे त्यौहार मनाए जाते है और हर त्यौहार की एक महान एतिहासिक पृष्ठभूमि होती है. इन्हीं त्यौहारो मे एक त्यौहार है नवरात्रि का त्यौहार. यह मुख्यत: हिन्दू त्यौहार है जो देवी शक्ति दुर्गा और उनके नौ रूपो  को समर्पित है. नवरात्रि जिसका अर्थ होता है ‘नौ राते’. इस त्यौहार के दौरान देवी शक्ति के नौ रूपो की पूजा की जाती है.  नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मीमहासरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।

हिन्दू कैलंडर के अनुसार नवरात्रि को वर्ष मे दो बार मनाया जाता है. इस त्यौहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं हालांकि, शक्ति की उपासना का पर्व “शारदीय नवरात्र” शरद ऋतु के आसपास और दशहरे से पहले बड़ी धूमधाम से मनाया मनाया जाता है.

क्यो मनाई जाती है नवरात्रि

अन्य पर्व की तरह इस पर्व की भी एतिहासिक पृष्ठभूमि है. इस पर्व से जुड़ी एक कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध किया था. महिषासुर को देवताओ से अजय होने का वरदान प्राप्त हुआ और उसने अपनी शक्ति का गलत उपयोग करना शुरू कर दिया. महिषासुर ने सभी देवताओ को तंग किया. अपनी शक्ति से उसने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया जिससे देवता भयभीत हो गए. महिषासुर ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया तथा सभी देवताओ को स्वर्ग से दूर पृथ्वी पर जाना पड़ा. महिषासुर के इस कृत्य से सभी देवता गुस्से मे आ गए और फिर सभी देवताओ ने मिलकर देवी दुर्गा की रचना की. महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र शस्त्र देवी दुर्गा को दिए देवी दुर्गा ओर शक्तिशाली हो गईं। नौ दिन देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध हुआ और अंत मे देवी दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया.

नवरात्रि के संबंध मे एक अन्य कथा भी प्रचलित है . जो नवरात्रि के दशहरे से संबंध को भी बताती है.

रावण के विरुद्ध युद्ध मे श्रीराम जी ने ब्रह्माजी के कहने से चंडी देवी को प्रसन्न करने के लिए हवन की व्यवस्था की जिसके लिए दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल का प्रबंध किया गया. अमरता की चाह मे रावण ने भी चंडी पूजा प्रारम्भ की.  रावण ने मायावी शक्ति से एक नीलकमल श्रीराम द्वारा आयोजित किए गए चंडी पूजन की हवन सामग्री से गायब कर दिया. जिससे श्रीराम के संकल्प टूटने और देवी के रुष्ट होने का भय था. तब भगवान राम को स्मरण हुआ कि मुझे लोग कमलनयन नवकंच लोचन  कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूरा करने के लिए एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने गए, तब देवी प्रकट हो गयी और श्रीराम से प्रसन्न हुई और उन्हे विजयश्री का आशीर्वाद दिया।

Tuesday, October 9, 2018

October 09, 2018

RTI अधिनियम क्या है और कैसे आप इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकते है ?



मुख्य रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ 2005 में एक अधिनियम लागू किया गया जिसे सुचना का अधिकार यानी RTI कहा गया. इसके अंतर्गत कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से कोई भी जानकारी ले सकता है बस शर्त यह है की RTI के तहत पूछी जाने वाली जानकारी तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए. यानि हम किसी सरकारी विभाग से उसके विचार नही पूछ सकते. जैसे आप के ईलाके में विकास के कामो के लिए कितने पैसे खर्च हुए है और कहाँ खर्च हुए है, आपके इलाके की राशन की दुकान में कब और कितना राशन आया, स्कूल, कॉलेज और हॉस्पिटल में कितने पैसे खर्च हुए है जैसे सवाल आप Right to information act  के तहत पता कर सकते है.
ये तो है सुचना के अधिकार का मतलब   लेकिन अभी भी लोगो के पास सुचना के अधिकार को लेकर कई सवाल है. और उन सवालों को हम बहुत ही सरल तरीके से जवाब देने की कोशिश करेंगे.

RTI के क्या फायदा है

  • कोई भी नागरिक, किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी प्राप्त कर सकता है
  • ये अधिकार एक आम नागरिक के पास है जो सरकार के काम या प्रशासन में और भी पारदर्शिता लाने का काम करता है.
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा कदम है.

RTI के तहत कैसी जानकारी मांगी जाए ? 

  • इस अधिकार का उपयोग हम किसी भी सरकारी विभाग की राय जानने के लिए नही कर सकते. इसका उपयोग हम तथ्यों की जानकारी पाने के लिए कर सकते है. जैसे, “डिस्पेंसरी में कितनी दवाइयां आती है, पार्क और साफ़ सफाई में कितना खर्च हुआ, किसी सरकारी दफ्तर में कितनी नियुक्तियां हुई?” इसके अलावा “ सड़क बनाने के लिए कितने पैसे आये और कहा पर खर्च हुए?”
  • सभी गवर्मेंट डिपार्टमेंट, प्रधानमंत्री, मुख्यमत्री, बिजली कंपनियां, बैंक, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, राष्ट्रपति, पुलिस, बिजली कंपनियां, RTI act के अन्दर आते है.
  • लोगो ने RTI के इस्तेमाल से कई ऐसी जानकारी हासिल की है जिससे उनकी रोजमर्रा की समस्याए सुलझ गई है.
  • सरकार की सुरक्षा से सम्बंधित जानकारी या गोपनीय जानकारी इस अधिकार के अंतर्गत नही आती.

कैसे प्राप्त करे जानकारी?

  • हर सरकारी विभाग में जन सुचना अधिकारी होता है. आप अपने आवेदन पत्र उसके पास जमा करवा सकते है.
  • आवेदन पत्र का फॉर्मेट इन्टरनेट से डाउनलोड कर सकते है या फिर एक सफ़ेद कागज पर अपना आवेदन(एप्लीकेशन) लिख सकते है जिसमे जन सुचना अधिकारी आपकी मदद करेगा.
  • RTI की एप्लीकेशन आप किसी भी भारतीय भाषा जैसे हिंदी, इंग्लिश या किसी भी स्थानीय भाषा में दे सकते हैं
  • अपने आवेदन पत्र की फोटो कॉपी करवा कर जन सुचना अधिकारी से रिसीविंग जरुर ले ले.
  • https://rtionline.gov.in/  इस साईट पर जा कर केंद्र सरकार के किसी भी विभाग से जानकारी प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन आवेदन भी कर सकते है.
  • अगर आप दिल्ली के निवासी है तो आप दिल्ली सरकार की rti से जुडी जानकारी और RTI फॉर्म http://delhigovt.nic.in/rti में जानकार जान सकते है और download कर सकते है.
  • साथ ही RTI से जुडी सभी जानकारी और गाइडलाइन्स आप इस वेबसाइट में  https://rtionline.gov.in/guidelines.php?appeal जाकर देख सकते है.
कब मिलेगी जानकारी ?
  • आवेदन पत्र डालने के ३० दिन के अन्दर आपको जवाब मिल जाएगा
  • यदि ऐसा नही होता है तो आप कार्ट में अपील कर सकते है

फीस– FEE FOR RTI APPLICATION

  • किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र के साथ 10/- रूपये की फीस है
  • ये फीस गरीबी रेखा से नीचे के लोगो के लिए माफ़ है.
NOTE – भारत में सिर्फ जम्मू कश्मीर ही ऐसा राज्य है जहाँ आप rti का इस्तेमाल नहीं कर सकते.
October 09, 2018

गूगल प्लस से 5 लाख यूजर्स का डाटा हुआ प्रभावित, बंद होगी सर्विस, जानें क्या है पूरा मामला



गूगल ने सोमवार को अपने सोशल नेटवर्क गूगल प्लस को बंद करने की घोषणा कर दी है। गूगल के प्रोजेक्ट स्ट्रोब द्वारा पाए गए विश्लेषण के अनुसार गूगल प्लस को बंद करने के पीछे का कारण यह है की गूगल अपने प्रोडक्ट को सफलतापूर्वक बढ़ा नहीं पाया। गूगल इस प्रोडक्ट को लेकर उपभोक्तओं की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया। गूगल प्लस को बंद करने की खबरें तो काफी समय से आ रही थी, लेकिन फिर भारत में ही सही इस प्रोडक्ट को यूजर्स इस्तेमाल कर रहे थे। हालांकि, इस मामले की दो बड़ी बातें हैं जो सबसे ज्यादा ऑनलाइन यूजर्स को प्रभावित करती हैं।

गूगल ने ऐप्स को सीमित करने का निर्णय लिया:

यहां एक बड़ा बिंदु जीमेल का है। गूगल ने उन ऐप्स को सीमित करने का फैसला लिया है जो यूजर्स से डाटा इस्तेमाल करने के लिए परमिशन मांगती हैं। अब से जो ऐप्स सीधे ईमेल फंक्शन करने में जिम्मेदार हैं, वो ही डाटा एक्सेस कर पाएंगी। इससे एक बड़ा प्रश्न यह उठता है की क्या अब तक ये ऐप्स डाटा का गलत इस्तेमाल कर रही थीं? अन्यथा गूगल एप्स परमिशन से सम्बंधित इतना बड़ा कदम क्यों उठाएगा?

एक्सेस को सीमित किया:

यह मुद्दा कई वर्षों से चला आ रहा है। गूगल ने एंड्रॉइड ऐप्स को एसएमएस और कॉल लॉग्स का डाटा इस्तेमाल करने के लिए सीमित कर दिया है। इतने वर्षों से ये ऐप्स बिना जरुरत के इस तरह के डाटा को एक्सेस कर रही थीं। उदाहरण के लिए: टॉर्च ऐप को आपके कॉन्टैक्ट लिस्ट को एक्सेस करने की अनुमति क्यों चाहिए? यह मामला सिर्फ टॉर्च एप तक सीमित नहीं है, लगभग सभी ऐप्स के पास यूजर्स के कॉन्टैक्ट्स और एसएमएस को एक्सेस करनी की अनुमति है।

अब गूगल ने यह निर्णय लिया है की यूजर्स के पास यह अधिकार और विस्तृत रूप में होगा। यूजर्स यह निर्णय ले पाएंगे की वो कौन-सा डाटा ऐप्स के साथ शेयर करेंगे। हालांकि, इससे डाउनलोड प्रक्रिया थोड़ी लम्बी हो जाएगी। लेकिन इससे यूजर्स यह निर्धारित कर पाएंगे की उन्हें कौन-सा डाटा शेयर करना है।

अल्फाबेट इंक के गूगल ने कहा है कि एक बग से गूगल प्लस के पांच लाख यूजर अकाउंट प्रभावित हुए हैं। इससे यूजर्स का डाटा एक्सटर्नल डेवलपर्स के सामने उजागर होने का खतरा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कंपनी ने उपभोक्ताओं के लिए सोशल नेटवर्क को बंद करने का फैसला लिया है।

गूगल ने नियामक छानबीन के डर से इस मुद्दे को जाहिर नहीं करने का फैसला लिया है। अनाम सूत्रों और आंतरिक दस्तावेजों के हवाले से इस आशय की जानकारी वॉल स्ट्रीट जनरल ने दी है। फेसबुक डाटा लीक और अब गूगल प्लस की इस खबर के बाद यूजर्स को यह सोचना होगा की वो किसी भी तरह की सेवाओं पर आंख मूंद कर विश्वास ना करें। इंटरनेट के इस दौर में अब समय है की यूजर्स अपने डाटा की जिम्मेदारी खुद लें।

Wednesday, October 3, 2018

October 03, 2018

Honor 8X लॉन्च, 16 अक्टूबर को पहुंचेगा भारत



ऑनर अपना नया स्मार्टफोन Honor 8X भारत में लॉन्च करने के लिए तैयार है। हुवावे के सब-ब्रैंड ऑनर की आधिकारिक वेबसाइट के मुतबाकि, नई दिल्ली को 16 अक्टूबर को एक इवेंट में ऑनर 8एक्स लॉन्च किया जाएगा। वेबसाइट से यह भी खुलासा हुआ है कि Honor के इस मिड-रेंज फैबपलेट को दुबई, यूएई और मैड्रिड व स्पेन में मंगलवार को ग्लोबली लॉन्च कर दिया गया है। हैंडसेट को अक्टूबर में मलयेशिया, रूस, चेक रिपब्लिक और थाइलैंड में उपलब्ध कराया जाएगा। ऑनर 8एक्स को पिछले महीने चीन में ऑनर 8एक्स मैक्स के साथ लॉन्च किया गया था। ऑनर की ग्लोबल वेबसाइट से ऑनर 8एक्स के अलग-अलग बाजारों में पहुंचने की तारीख का पता चलता है। नई दिल्ली में 16 अक्टूबर को कंपनी एक इवेंट आयोजित कर रही है, जिसमें नया फैबलेट लॉन्च किया जाएगा। 

Honor 8X की कीमत व उपलब्धता 
चीन में ऑर 8एक्स के 4 जीबी रैम/64 जीबी स्टोरेज वेरियंट की कीमत 1,399 चीनी युआन (करीब 14,900 रुपये) है। 6 जीबी रैम/64 जीबी इनबिल्ट स्टोरेज वेरियंट की कीमत 1,599 चीनी युआन (करीब 17,100 रुपये) जबकि 6 जीबी रैम/128 जीबी स्टोरेज वेरियंट की कीमत (करीब 20,300 रुपये) है। अभी ऑनर 8एक्स की अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए कीमत व उपलब्धता का खुलासा नहीं किया गया है। 

Honor 8X के स्पेसिफिकेशन्स 
ऑनर 8एक्स में 6.5 इंच फुल एचडी+ डिस्प्ले है जिसका आस्पेक्ट रेशियो 19.5:9 है। स्क्रीन की पिक्सल डेनसिटी 397 पीपीआई है। हैंडसेट में हाईसिलिकॉन किरिन 710 प्रोसेसर है। 

फटॉग्रफी के लिए ऑनर 8एक्स में 20 मेगापिक्सल प्राइमरी व 2 मेगापि्कसल सेकंडरी सेटअप है। कैमरा अपर्चर एफ/1.8 और एलईडी फ्लैश के साथ आता है। सेल्फी और विडियो के लिए अपर्चर एफ/2.0 के साथ 16 मेगापिक्सल सेल्फी कैमरा दिया गया है। स्मार्टफोन को पावर देने के लिए 3750mAh बैटरी दी गई है। 

Sunday, September 16, 2018

September 16, 2018

Monocrystalline और Polycrystalline में क्या अंतर है


अगर आप सोलर पैनल लगवाने की सोच रहे हैं और अगर आप यह सोचने में परेशान हैं कि कौन सा सोलर पैनल सही रहेगा और कौन-सा सोलर पैनल सबसे अच्छा है.मार्केट में आपको कई कंपनियां देखने को मिलेंगी जो सोलर पैनल भेजती हैं और सभी कंपनी अपने सोलर पैनल को सबसे बढ़िया बताती है लेकिन सोलर पैनल कई प्रकार के होते हैं जिनमें से सबसे ज्यादा Monocrystalline और Polycrystalline सोलर पैनल आपको देखने को मिलेंगे.

अगर आपको नहीं पता कि Monocrystalline और Polycrystalline क्या है इन दोनों में क्या फर्क है और इनमे से कौन सा ज्यादा बढ़िया है तो इस पोस्ट में आपको इन दोनों से संबंधित पूरी जानकारी दी जाएगी.

Monocrystalline और Polycrystalline में क्या अंतर है


दोनों सोलर पैनल को देखने से ही आप बता सकते हैं कि कौन सा Monocrystalline है और कौन सा Polycrystalline है. Monocrystalline पैनल का रंग काला होता है और Polycrystalline पैनल का रंग गहरा नीला होता है रंग के अलावा भी इनमें और काफी अंतर है जो कि आपको नीचे बताए गए हैं.



  • Monocrystalline सोलर पैनल कम धूप में भी काम कर सकते हैं. जिस क्षेत्र में मौसम खराब रहता है,जहां पर ठंड ज्यादा पड़ती है या सूरज कम समय के लिए ही दिखाई देता है. उस क्षेत्र में Monocrystalline सोलर पैनल बहुत ही फायदेमंद होंगे.
  • Polycrystallineसोलर पैनल कम धूप होने पर काफी कम पावर देती है इसीलिए Polycrystalline सोलर पैनल का इस्तेमाल ज्यादा धूप वाले रेगिस्तान वाले क्षेत्र में ज्यादा किया जाता है. जहां पर दिन के समय काफी ज्यादा धूप रहती है.
  • Monocrystalline सोलर पैनल Polycrystalline सोलर पैनल से काफी महंगे होते हैं. इनमें शुद्ध सिलिकॉन का इस्तेमाल किया जाता है.
  • Monocrystalline पैनल की Efficiency Polycrystalline पैनल के मुकाबले काफी ज्यादा होती है .
  • 1000 W पावर बनाने के लिए Monocrystalline पैनल Polycrystalline पैनल के बजाय कम जगह लेते है .
  • Monocrystalline पैनल की Life Polycrystalline पैनल से काफी ज्यादा होती है .


  • तो इन दोनों में थोड़ा ही अंतर है. और इनकी कीमत में भी थोड़ा ही अंतर होता है. जो इन दोनों में ज्यादा अंतर है वही है कि खराब मौसम में भी Monocrystalline  सोलर पैनल काम करते रहते हैं और Polycrystalline सोलर पैनल बंद हो जाते हैं लेकिन अगर आप इन दोनों को सही रूप में चेक करेंगे तो आपको इनकी आउटपुट में वही अंतर मिलेगा अगर Monocrystalline पैनल 20 वोल्ट सप्लाई देगा तो Polycrystalline सोलर पैनल 18 वोल्ट तक पावर सप्लाई देगा. अगर आपके क्षेत्र में धूप अच्छी निकलती है तो आप Polycrystalline सोलर पैनल खरीद सकते हैं यह आपको सस्ते पड़ेंगे और यह आपके क्षेत्र में अच्छी प्रकार काम भी करेंगे और अगर आपके क्षेत्र में धूप काफी कम निकलती है तो आपको Monocrystalline पैनल खरीदनी चाहिए.
    September 16, 2018

    घर के लिए सोलर सिस्टम लगाने का तरीका




    अगर आप किसी कंपनी द्वारा सोलर पैनल का पूरा सिस्टम अपने घर पर लगवाते हैं तो इसमें आपको सिर्फ कंपनी को पैसे देने पड़ते हैं बाकी सारा काम कंपनी खुद करती है. लेकिन अगर आप खुद अपने घर पर सोलर पैनल लगाना चाहते हैं तो इससे आप Installation फीस बता सकते हैं. सोलर पैनल इंस्टॉल करने के लिए आपको इसके बारे में कुछ विशेष जानकारी होनी चाहिए. जो कि हम इस पोस्ट में आपको बताने वाले हैं.



    इस पोस्ट में हम आपको ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम के बारे में बताएंगे कि एक पूरा ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम आप कैसे खुद अपने घर पर लगा सकते हैं.सोलर पैनल को इंस्टॉल करने से पहले आपको कुछ आवश्यक सामग्री की जरूरत पड़ेगी जिनकी मदद से आप सोलर पैनल को अपने घर पर या अपने घर की छत पर लगाएंगे. इस सामग्री की सूची आपको नीचे दी गई है.


    Mounting Structure




    Mounting Structure पर हम अपने सोलर पैनल को सेट करते हैं लेकिन Mounting Structure को भी छत के ऊपर सेट करने के लिए आप Hole Fastener का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर Mounting Structure की टांगों पर आप कंक्रीट डाल कर उसे छत पर अच्छी मजबूती से सेट कर सकते हैं. लेकिन अगर आप कॉन्क्रीट डालकर उसे FIX करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको Mounting Structure को अपनी जरुरत के हिसाब से डिजाइन करना होगा.
    मार्केट में आपको कई प्रकार के Mounting Structure देखने को मिलेंगे लेकिन आप को GI Mounting Structure बनवाना है क्योंकि इस पर किसी प्रकार का कोई जंग नहीं लगता. अगर आप लोहे का Mounting Structure लगवाते हैं तो उस पर जंग लग कर वह बहुत जल्दी खराब हो जाता है. अगर आप बहुत बढ़िया Mounting Structure लगवाना चाहते हैं तो आप इसे किसी Welding की Shop से बनवा कर लाए. और उसकी टांगें भी अपने हिसाब से बनवाएं अगर आपको कॉन्क्रीट डालकर इसे छत पर Fix करना है तो टांगों को थोड़ा बड़ा बनवाएं ताकि यह अच्छे से Fix हो सके.

    कौन सा इनवर्टर खरीदना चाहिए

    इन्वर्टर और बैटरियां आपको अपने घर में चल रहे लोड के अनुसार खरीदना होगा.मान लीजिए आपके घर में चलने वाला लोड 1000 Watt है. और जब सोलर पैनल से बिजली ना मिले और मेन सप्लाई से भी बिजली ना मिले तो आपको लोड कम से कम 3 घंटे तक चलाना है तो आपको कितनी बड़ी बैटरी चाहिए होगी इसकी जानकारी नीचे दी गई है.
    Load = 1000 Watt.
    Inverter Size = ?
    Back Up Time For Batteries = 3 Hours
    इन्वर्टर आपको VA की रेटिंग में मिलेगा इसीलिए हमें हमारे घर के टोटल लोड से 25% ज्यादा रेटिंग का इनवर्टर लेना होगा .
    1000* (25/100) = 250
    1000 + 250 = 1250
    इस हिसाब से आपको 1250 VA का या उससे ज्यादा बढ़ा इनवर्टर खरीदना होगा .

    इन्वर्टर की बैटरी कौन सी खरीदनी चाहिए

    इनवर्टर की बाद में आपको बैटरी खरीदते समय भी अच्छे से ध्यान रखना होगा क्योंकि जब सोलर पैनल से सप्लाई नहीं आएगी तो आपको लोड बैटरी पर ही चलाना पड़ेगा. और जितनी ज्यादा Ah की बैटरी आप खरीदेंगे उतना ज्यादा बैटरी बैकअप आपको मिलेगा. इसके बारे में भी हमने एक पूरी डिटेल में पोस्ट बनाई है उसे आप पढ़ें जिससे आपको पूरी जानकारी हो जाएगी कि आपको कौन सी बैटरी लेनी चाहिए.
    जैसा कि ऊपर हमने माना कि आपको 1000 Watt लोड 3 घंटे तक चलाना है तो आपको कितने Ah की बैटरी लगानी होगी.
    इसका एक छोटा सा सूत्र होता है जिससे कि आप पता लगा सकते हैं कि आपको कितनी AH की बैटरी चाहिए.
    बैटरी बैकअप = Ah X 12 V / 1000
    3 = Ah X 12 /1000
    3×1000 / 12 = Ah
    250 = AH

    तो इस हिसाब 1000 Watt लोड को चलाने के लिए आपको 250 Ah की बैटरी की आवश्यकता होगी. तो इसके लिए आप 150 Ah की दो बैटरियां खरीद लीजिए जिससे आपको 3 घंटे का बैटरी बैकअप मिल जाएगा क्योंकि ऊपर बताए गए सूत्र के अनुसार 3 घंटे में आपकी बैटरी बिल्कुल Discharge हो जाएगी तो बैटरी पूरी तरह से Discharge नए हो इसीलिए हमें 150 Ah की दो बैटरियां खरीदनी होगी.

    बैटरियों कनेक्शन आपको इनवर्टर के हिसाब से करने होंगे अगर आपका इनवर्टर 24v पर काम करता है तो आपको बैटरियों के कनेक्शन Series में करने होंगे और अगर आपका इनवर्टर 12v पर काम करता है तो आपको दोनों बेटियों के कनेक्शन Parallel करने पड़ेंगे.

    सोलर पैनल कौन सा खरीदना चाहिए

    Monocrystalline और Polycrystalline में क्या अंतर है

    सोलर पैनल दो प्रकार के होते हैं. Monocrystalline और Polycrystalline , इन दोनों में काफी अंतर होता है इसके बारे में पहले हमने बताया है आप वह पोस्ट जरूर देखें.Monocrystalline सोलर पैनल कम धूप में भी काम कर सकते हैं. जिस क्षेत्र में मौसम खराब रहता है,जहां पर ठंड ज्यादा पड़ती है या सूरज कम समय के लिए ही दिखाई देता है. उस क्षेत्र में Monocrystalline सोलर पैनल बहुत ही फायदेमंद होंगे. Polycrystallineसोलर पैनल कम धूप होने पर काफी कम पावर देती है इसीलिए Polycrystalline सोलर पैनल का इस्तेमाल ज्यादा धूप वाले रेगिस्तान वाले क्षेत्र में ज्यादा किया जाता है. जहां पर दिन के समय काफी ज्यादा धूप रहती है. तो इन दोनों में से आप अपने क्षेत्र के हिसाब से एक सोलर पैनल खरीद सकते हैं.

    Assemble Solar Panels & Inverter

    अब आपको सोलर पैनल को छत पर लगाना है जिसके लिए आप Mounting Structure का इस्तेमाल करेंगे. और इनवर्टर को बैटरियों के साथ रखेंगे. इनवर्टर को हमेशा किसी मेज पर रखें और बैटरियों को Battery Tray में रखें ताकि यह ज्यादा सुरक्षित रहे और धूल मिट्टी से बची रहे. नहीं तो आपको बैटरियों की लगातार सफाई करनी होगी.

    कनेक्शन करे


    कनेक्शन करते समय आपको अच्छे MC4 Connectors का इस्तेमाल करना होगा जिससे कि सोलर पैनल की तारे अपस में ज्यादा अच्छे से जुड़ सकेगी .सोलर पैनल से तार जोड़ने के बाद में इन्हें इनवर्टर तक ले कर आए और अगर आप सोलर इन्वर्टर पर इसे जोड़ना चाहते हैं तो तारों को सीधे इनवर्टर पर जोड़ दें और अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो तारों को सोलर चार्ज कंट्रोलर पर लगा दे. और फिर बैटरी की तारों को इनवर्टर पर लगा दे. और अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो बैटरी की तारों को इनवर्टर और MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर दोनों पर लगानी पड़ेगी.

    सोलर पैनल और सोलर इनवर्टर के कनेक्शन

    सोलर पैनल से आने वाली Positive तार को इनवर्टर पर दिए गए सोलर पैनल के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है.

    सोलर पैनल और MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर के कनेक्शन

    अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो सोलर पैनल से आने वाली Positive तार को सोलर चार्ज कंट्रोलर पर दिए गए सोलर पैनल के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है.

    सोलर इनवर्टर और बैटरी के कनेक्शन

    बैटरी से आने वाली Positive तार को इनवर्टर पर दिए गए बैटरी के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है. और अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो समानांतर (Parallel ) बैटरी से आने वाली Positive तार को इनवर्टर पर दिए गए बैटरी के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है.
    कलेक्शन करते समय आपको विशेष ध्यान रखना है कि पॉजिटिव टर्मिनल हमेशा पॉजिटिव के साथ में ही जोड़ें नहीं तो आपका इनवर्टर खराब हो सकता है. सभी कनेक्शन होने के बाद में इनवर्टर की Main Input को सप्लाई के साथ में जोड़ दें. जब मेन सप्लाई उपलब्ध होगी तो आप के उपकरण मेन सप्लाई से चलेंगे और आपकी बैटरी भी चार्ज होगी और जब दिन के समय में सोलर पैनल से बिजली प्राप्त होगी उससे बैटरी चार्ज होगी और हमारे घर के उपकरण चलेंगे.
    September 16, 2018

    ट्रांसफार्मर क्या है ? Working , Types और उपयोग



    ट्रांसफार्मर एक ऐसा विद्युत यंत्र है जो कि AC सप्लाई की फ्रीक्वेंसी को बिना बदले उसे कम या ज्यादा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसका इस्तेमाल उन DC उपकरण पर किया जाता है जोकि AC सप्लाई द्वारा चलाए जाते हैं जैसे की एंपलीफायरबैटरी चार्जर इत्यादि. DC उपकरण ऐसी उपकरण के मुकाबले बहुत कम बिजली से चलते हैं . जैसे कि ऑडियो एंपलीफायर 12 Volt DC से काम करता है इसीलिए ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल कर के पहले AC Volt को 220 Volt से 12 Volt में बदला जाता है और फिर इसे रेक्टिफायर की मदद से AC से DC में बदला जाता है.

    सबसे पहले ट्रांसफार्मर का आविष्कार Michael Faraday ने 1831 और Joseph Henry ने 1832 में करके दिखाया था.आज ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बिजली के हर क्षेत्र में हो रहा है बड़े से बड़े पावर स्टेशन से लेकर एक छोटे से घर में भी ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किसी न किसी रुप में किया जा रहा है और हर जगह ट्रांसफार्मर का सिर्फ एक ही काम होता है बिजली को कम या फिर ज्यादा करना तो आज की इस पोस्ट में हम आपको ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है टाइप्स ऑफ़ ट्रांसफार्मर उच्चाई ट्रांसफार्मर ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते है ट्रांसफार्मर की संरचना बिजली ट्रांसफार्मर ट्रांसफार्मर के भाग के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं.







    • ट्रांसफार्मर के भाग
    • ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं
    • कोर कि सरंंचना के आधार पर
    • फेज की संख्या के आधार पर
    • ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है                   

    • ट्रांसफार्मर के भाग

        ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं और सभी ट्रांसफार्मर में कुछ खास कॉन्पोनेंट होते हैं जो कि छोटे से छोटे और बड़े से बड़े ट्रांसफार्मर में लगाए जाते हैं. लेकिन जैसा कि आपको पता है ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं इसीलिए बड़े ट्रांसफार्मर के अंदर और भी कई कॉन्पोनेंट लगाए जाते हैं. लेकिन जो कंपोनेंट सभी ट्रांसफार्मर में लगे होते हैं उसकी सूची आपको नीचे दी गई है जिससे आपको पता लगेगा कि ट्रांसफार्मर में कौन-कौन से भाग होते हैं और कौन कौन से भाग क्या क्या काम करते हैं.

      Cores -कोर

      ट्रांसफार्मर को Core Form और Shell Form में बनाया जाता है. और जिस ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग को Core के चारों तरफ लगाया जाता है उसे Core Form कहते हैं और जिस ट्रांसफार्मर में Core को वाइंडिंग के चारों तरफ लगाया जाता है तो उसे Shell Form कहते हैं .
      ट्रांसफार्मर की कोर सिलिकॉन स्टील की पत्तियों द्वारा बनाई जाती है और यह कौर ट्रांसफार्मर में होने वाले Iron और Eddy करंट Loss को कम करने के लिए लगाई जाती है. और इन पत्तियों की चौड़ाई 0.35 Mm से 0.75 Mm के बीच में होती है और इन पत्तियों को आपस में वार्निश से जोड़ा जाता है. ट्रांसफार्मर में यह पत्तियां मुख्यतः E, I, L आदि के आकार में लगाई जाती है .

      Coil

      ट्रांसफार्मर की Coil ट्रांसफार्मर के इनपुट और आउटपुट तारों के साथ में जोड़ी जाती है. ट्रांसफार्मर में दो Coil लगी होती है. जो कि एक इनपुट का कार्य करती है और एक आउटपुट का कार्य करती है. Coil को वाइंडिंग भी कहा जाता है .यह वाइंडिंग एक दूसरे से जुड़ी नहीं होती. पहली वाइंडिंग और दूसरी वाइंडिंग एक दूसरे से बिल्कुल अलग होती है और इनकी कोर के चारों तरफ लपेटे की संख्या भी कम और ज्यादा होती है. और प्राइमरी वाइंडिंग से सेकेंडरी वाइंडिंग में सप्लाई म्यूच्यूअल इंडक्शन के कारण जाती है. इसके बारे में नीचे आपको ज्यादा अच्छे से बताया गया है लेकिन पहले इसकी वाइंडिंग के बारे में जान ले.



      प्राथमिक वाइंडिंग -Primary Coil :- ट्रांसफार्मर में जिस वाइंडिंग पर AC इनपुट सप्लाई दी जाती है. उसे प्राइमरी वाइंडिंग या प्राथमिक वाइंडिंग कहते हैं.

      द्वितीय वाइंडिंग- Secondary Coil :- ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग पर आउटपुट के तार लगाए जाते हैं. और इसी वाइंडिंग से ट्रांसफार्मर की आउटपुट मिलती है.या यूं कहें कि ट्रांसफार्मर की जिस वाइंडिंग पर लोड कनेक्ट किया जाता है उसे सेकेंडरी वाइंडिंग कहते हैं.

      Insulated Sheet

      प्राइमरी वाइंडिंग और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच में एक सीट लगाई जाती है ताकि किसी प्रकार का कोई भी शार्ट सर्किट में हो. और ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग पर किसी प्रकार का कोई नुकसान ना हो. इसीलिए यह वाइंडिंग के बीच में इंसुलेटेड सीट लगाई जाती है .

      Conservator Tank


      जैसा कि पहले हमने बताया ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं उन्हीं के आधार पर उनके अंदर कॉन्पोनेंट लगाए जाते हैं इसीलिए थ्री फेज ट्रांसफार्मर में यह टैंक होता है जिसके अंदर तेल डाला जाता है और यह ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने का काम करता है क्योंकि थ्री फेज ट्रांसफार्मर काफी बड़ा होता है इसीलिए वह गर्म भी बहुत ज्यादा होता है इसीलिए ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए तेल का इस्तेमाल किया जाता है और इस टैंक में ट्रांसफार्मर के लिए तेल भरा जाता है .

      Oil Level Indicator

      Conservator Tank में ऑयल भरा जाता है लेकिन इसे मापने के लिए इसके अंदर 1 मीटर लगाया जाता है जो कि टैंक में भरे ऑयल की मात्रा को बताता है. और यह वेल मीटर इंडिकेटर टैंक के ऊपर ही लगाया जाता है 

      Bushing

      Bushing का इस्तेमाल ट्रांसफार्मर में Live Conductor और ट्रांसफार्मर की बॉडी को इंसुलेट करने के लिए लगाया जाता है. और यह ट्रांसफार्मर के सभी टर्मिनल पर लगाया जाता है और इसका इस्तेमाल थ्री फेज ट्रांसफार्मर में ही किया जाता है .

      Radiator Fan

      रेडिएटर का इस्तेमाल ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए किया जाता है जैसे गाड़ियों में भी गाड़ियों के इंजन को ठंडा रखने के लिए रेडिएटर का इस्तेमाल होता है उसी प्रकार ट्रांसफार्मर में भी एक रेडिएटर लगाया जाता है लेकिन यह रेडिएटर सिर्फ बड़े ट्रांसफार्मर में ही लगाया जाता है.

      Oil Filling Pipe

      ट्रांसफार्मर में तेल भरने के लिए ट्रांसफार्मर के टाइम पर एक पाइप लगाया जाता है जिसे Oil Filling Pipe कहते हैं और इसी की मदद से ट्रांसफार्मर में तेल भरा जाता है .
      तो यह कुछ महत्वपूर्ण भाग ट्रांसफार्मर के होते हैं जो कि लगभग सभी ट्रांसफार्मर में आपको देखने को मिलेंगे लेकिन यहां पर मैंने कुछ और भी कंपोनेंट बताए हैं जो कि सिर्फ बड़े ट्रांसफार्मर में है आपको देखने को मिलेंगे यह ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

      Transformer कितने प्रकार के होते हैं?

      TRANSFORMER OF CLASSIFICATION In Hindi ? ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं जहां पर इनका इस्तेमाल किया जाता है उसी आधार पर ट्रांसफार्मर को बनाया जाता है जैसे कि अगर हमें घर में बैटरी का चार्जर बनाना है तो उसके लिए हमें स्टेप डाउन यानी के वोल्टेज को कम करने वाले ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करना पड़ेगा और अगर कहीं पर हमें इनवर्टर बनाना है तो वहां पर हमें स्टेप अप ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करना पड़ेगा या फिर हमारे घर में इस्तेमाल होने वाला स्टेबलाइजर में स्टेप अप ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है तो इसी लिए ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं जिनकी सूची नीचे दी गई है .

      आउटपुट वोल्टता के आधार पर

      1.स्टेप अप ट्रांसफार्मर


      जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर अधिक आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है उसे स्टेप अप ट्रांसफार्मर कहते हैं.ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग के मुकाबले सेकेंडरी वाइंडिंग पर ज्यादा Coil के Turn या लपेटे होती हैं. और इसका इस्तेमाल स्टेबलाइजरइनवर्टर इत्यादि में किया जाता है.

      2.स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर


      जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को घटाकर कम आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है उसे स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर कहते हैं.इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है क्योंकि DC सप्लाई से चलने वाले बहुत सारे उपकरण मार्केट में है और इसे हम घर में आने वाली AC सप्लाई से चलाने के लिए ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करते हैं जो कि 220 Volt AC को घटा कर उपकरण के अनुसार कर देता है जैसे कि ऑडियो एंपलीफायर को 12 Volt DC सप्लाई की जरूरत होती है इसलिए हमें स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करके 220 Volt को 12 Volt में बदलना पड़ता है और फिर उसे AC TO DC कनवर्टर से DC सप्लाई में बदलना पड़ता है . इसीलिए इस ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है .

      कोर कि सरचना के आधार पर


      1.शेल टाइप ट्रांसफार्मर :-


      यह तथा आकर की पतियों को जोडकर बनाया जाता है इसमें तीन लिब पड़े होते है जिसमे से एक लिब पर दोनों वाइंडिंग की जाती है वाइंडिंग बीच वाले लिब पर की जाती है जिसका क्षेत्र दोनों साइड वालो से दो गुना होता है कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग कोर के नजदीक की जाती है और ज्यादा वोल्टेज वाली वाइंडिंग कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग के ऊपर की जाती है ताकि इन्सुलेशन आसानी से किया जा सके इसमें मेगनेटिक फ्लक्स के लिए दो रास्ते होते है इसे हम कम वोल्टेज के लिए यूज करते है.

      2.कोर टाइप ट्रांसफार्मर :-

      यह ट्रांसफार्मर आकार सिलिकोन स्टील की पतियों को इन्सुलेट करके जोड़ कर बनाया जाता है इसकी बनावट आयताकार रूप में होती है यह इसके चार लिब होते है जिनमे से दो आमने सामने वाले लिबो पर वाइंडिंग की जाती है इसमें मेगनेटिक फ्लक्स के लिए केवल एक ही रास्ता होता है यह हाई वोल्टेज के लिए यूज किया जाता है.

      फेज की संख्या के आधार पर





      1.सिंगल फेज ट्रांसफार्मर :-

      सिंगल फेस AC.सप्लाई पर कार्य करने वाला ट्रांसफार्मर होता है यह ट्रांसफार्मर सिंगल फेज की वोल्टेज को कम या ज्यादा करता है उसे सिंगल फेज ट्रांसफार्मर कहते हैं इसमें दो वाइंडिंग होती है प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग प्राथमिक वाइंडिंग में सिंगल फेज विद्युत सप्लाई दी जाती है और द्वितीयक वाइंडिंग में सिंगल फेज विद्युत सप्लाई स्टेप डाउन या स्टेप अप के रूप में ली जाती है.

      2.थ्री फेज ट्रांसफार्मर :-

      थ्री फेज AC. सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफार्मर को थ्री फेज ट्रांसफार्मर कहते हैं इसमें तीन प्राथमिक तथा तीन द्वितीयक वाइंडिंग होती है यह सेल या कोर टाइप के होते हैं इनका उपयोग 66, 110, 132, 220, 440 KVA स्टेप अप करके ट्रांसमिट करने के लिए किया जाता है और जो डिस्ट्रीब्यूशन प्रणाली में जो ट्रांसफार्मर होते है वे थ्री फेज ट्रांसफार्मर होते हैं और आजकल थ्री फेज ट्रांसफार्मर का ही अधिक प्रयोग होता है.

      ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है

      ट्रांसफार्मर म्यूच्यूअल इंडक्शन के सिद्धांत पर काम करता है. और ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग होती है जिसमें से एक वाइंडिंग Electromotive Force और दूसरी वाली Magnetic Field पर काम करती है.

      जब पहली वाइंडिंग में AC सप्लाई दी जाती है तो उसके चारो तरफ एक मैगनेटिक फील्ड या चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है जिसको Electromotive Force कहते है।

      और जब दूसरी Coil इस मैग्नेटिक फील्ड के अंदर आती है तो दूसरी Coil में इलेक्ट्रॉन बहने लगते हैं और इस क्वाइल के सिरों पर हमें AC सप्लाई मिल जाती है . लेकिन ट्रांसफार्मर की आउटपुट सप्लाई इसकी इनपुट के ऊपर निर्भर करेगी.

      ट्रांसफार्मर को सप्लाई से जोड़ने से पहले टेस्ट करें

      अगर आप कहीं पर ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करना चाहते हैं चाहे वह सिंगल फेज ट्रांसफार्मर हो या फिर थ्री फेज ट्रांसफार्मर हो इसका कनेक्शन करने से पहले आपको कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है ताकि आपका ट्रांसफार्मर सही तरह से काम करें और आपको किसी प्रकार की कोई हानि ना हो.

      इंसुलेशन टेस्ट

      इंसुलेशन को टेस्ट करने के लिए आपको दोनों वाइंडिंग के बीच में मैगर का इस्तेमाल करना है और दोनों वाइंडिंग के बीच का प्रतिरोध पता करना है.

      अर्थ कंटीन्यूटी टेस्ट

      इस टेस्ट को करने के लिए आपको टेस्ट लैंप का इस्तेमाल करना होगा इसके लिए टेस्ट लैंप की एक तार को ट्रांसफार्मर की बॉडी के साथ जोड़ दें और दूसरी तार को फेज की तार से जोड़ दें अगर लैंप जलता है तो इसका मतलब ट्रांसफार्मर की अर्थिंग बिल्कुल सही तरह से काम कर रही है.

      ट्रांसफार्मर आयल टेस्ट

      इस टेस्ट में ट्रांसफार्मर के तेल की जांच की जाती है इस टेस्ट में ट्रांसफार्मर की डाई इलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ को मापा जाता है इस के लिए ट्रांसफार्मर आयल टेस्टिंग उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है. और जब कॉटन की टेप को 120 डिग्री पर 48 घंटे तक ट्रांसफार्मर के तेल में रखा जाता है अगर इसकी विशेषता में कोई फर्क ना आए तो इसका मतलब ट्रांसफार्मर का तेल अच्छी क्वालिटी का है.

      शार्ट सर्किट टेस्ट

      इस टेस्ट के दौरान यह पता लगाया जाता है कि प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग आपस में स्पर्श तो नहीं हो रही है. इसके लिए मेगर का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें मेगर के टर्मिनल को प्राइमरी वाइंडिंग के सिरे से जोड़ते हैं. तथा मेगर के दूसरे टर्मिनल को सेकेंडरी रिवाइंडिंग से जोड़ते हैं और मेजर को घुमाने पर सुई 0 रीडिंग देती है तो दोनों वाइंडिंग आपस में शार्ट है यदि सुई इंनफिनिटी पर है तो वाइंडिंग शार्ट नहीं है.