EDUCATION
October 13, 2018
पांचवी फेल तांगे वाले से MDH मसालों तक का सफ़र dharampal gulati success story .
किसी भी दुनियां का बेताज बादशाह बनना कोई आम बात नही है. इसके पीछे कड़ी महनत, कड़ा संघर्ष और ख़राब अनुभव होता है और जब बात हो दुनियां भर के रसोई घरो की तो उस बादशाही को बरकरार रखना और भी मुश्किल हो जाता है. 68 साल पहले बनी एक कंपनी हमारे खाने के स्वाद का ख्याल रखती है. ये कंपनी 60 से भी अधिक तरह के मसाले तैयार करती है और उसका दुनियां के कई देशो में निर्यात करती है. अब आप समझ ही गए होगे कि हम बात कर रहे है MDH कंपनी की जिसके मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी/ dharampal gulati को मसालों की दुनियां का बेताज बादशाह कहा जाता है.
भारत में रह कर शायद ही आपने इनके बनाये मसालों का स्वाद ना चखा हो. जाने अनजाने ही सही अपने जरुर धर्मपाल जी के मसाले अपने खाने में इस्तेमाल किये होंगें. लेकिन यहाँ तक पहुचने के लिए धर्मपाल जी को सालो नही बल्कि पूरी जिंदगी लग गई. आइये थोडा और विस्तार से जानते है उनकी इस रोचक और मसालेदार जिंदगी के बारे में.
धर्मपाल गुलाटी की सफलता की कहानी DHARAMPAL GULATI BIOGRAPHY IN HINDI
महाशय धर्मपाल गुलाटी जी का जन्म 27 मार्च 1923 को सियालकोट में हुआ था. सियालकोट अब पाकिस्तान में है. उनका परिवार बेहद सामान्य परिवार था. पिता का नाम महाशय चुन्नीलाल और माता का नाम चनन देवी था जिनके नाम पर दिल्ली के जनकपुरी में चनन देवी हॉस्पिटल भी है. धर्मपाल जी का पढाई- लिखाई में बिलकुल भी मन नही लगता था जबकि उनके पिता जी चाहते थे कि वह खूब पढ़े.
लेकिन ये बात उनके पिता जी समझ चुके थे कि dharampal जी का मन अब आगे पढने का नही है जैसे तैसे उन्होंने चौथी कक्षा पास की और पांचवी में वह फेल हो गए और स्कूल छोड़ दिया. इसके बाद उनके पिता जी ने उन्हें एक बढई की दुकान पर काम सिखने के लिए लगा दिया. लेकिन धर्मपाल जी का मन नही लगा और उन्होंने वो काम भी नही सीखा. 15 वर्ष की अपनी जिंदगी में वो 50 काम कर चुके थे. उन दिनों सियालकोट लाल मिर्च के बाज़ार के लिए जाना जाता था तो उनके पिता ने उन्हें एक मसाले की दुकान खुलवा दी. धीरे धीरे काम अच्छा हो गया और खुब चलने लगा लेकिन तब तक भारत अपनी आज़ादी के लड़ाई के करीब पहुँच गया था और भारत पाकिस्तान का विभाजन उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गया.
आज़ादी के लड़ाई के बाद सियालकोट पाकिस्तान के हिस्से चला गया और dharampal जी के परिवार का वहां रह पाना मुश्किल हो गया. लिहाजा वह सब कुछ छोड़ छाड़ कर दिल्ली के करोलबाग में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रहने लगे. अपना घर बार और रोजगार छोड़ कर वह दिल्ली आये तो उनकी जेब में 1500 रूपये थे. दिल्ली में कोई रोजागर न होने के कारण उन्होंने जैसे-तैसे एक तांगा ख़रीदा और वो चलाने लगे हालाकि इसमें भी उनका मन नही लगा और 2 महीने तांगा चलाने के बाद वो भी छोड़ दिया.
अब धर्मपाल जी एक बार फिर बेरोजगार हो गए. इसी बीच उनके मन में मसाले बनाने का ख्याल आया जिसमे उनका मन लगता था और उन्होंने अपना काम करने की सोची. वह बाहर से सूखे मसाले खरीदते, उन्हें घर पर पिसते और बाज़ार में बेचते. धीरे धीरे काम बढ़ने लगा. क्योकि उनकी ईमानदारी मसालों को गुणवत्ता को बनाये रखा था. अब मसाले पिसने का काम घर पर करना मुश्किल होने लगा तो उन्होंने बाज़ार से मसाले पिसवाना शुरू किया लेकिन मसाला पिसने वाला उनके मसाले में मिलावट करने लगा जिससे धर्मपाल जी को बहुत दुख हुआ. अब उन्होंने खुद मसाला पिसने की फैक्ट्री लगाने की सोची और दिल्ली के कीर्तिनगर में अपनी पहली मसाला फैक्ट्री शुरू की. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड कर नही देखा. और MDH एक ब्रांड बना और धर्मपाल जी आज उसकी पहचान है
आज रसोई घर में हम धर्मपाल जी की फैलाई खुशबु महसूस करते है और उनके बनाये मसाले के स्वाद से भी वाकिफ है इनकी जिंदगी को जान कर यही लगता है कि दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत के दम पर आदमी कुछ भी कर सकता है