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Sunday, September 16, 2018

September 16, 2018

Monocrystalline और Polycrystalline में क्या अंतर है


अगर आप सोलर पैनल लगवाने की सोच रहे हैं और अगर आप यह सोचने में परेशान हैं कि कौन सा सोलर पैनल सही रहेगा और कौन-सा सोलर पैनल सबसे अच्छा है.मार्केट में आपको कई कंपनियां देखने को मिलेंगी जो सोलर पैनल भेजती हैं और सभी कंपनी अपने सोलर पैनल को सबसे बढ़िया बताती है लेकिन सोलर पैनल कई प्रकार के होते हैं जिनमें से सबसे ज्यादा Monocrystalline और Polycrystalline सोलर पैनल आपको देखने को मिलेंगे.

अगर आपको नहीं पता कि Monocrystalline और Polycrystalline क्या है इन दोनों में क्या फर्क है और इनमे से कौन सा ज्यादा बढ़िया है तो इस पोस्ट में आपको इन दोनों से संबंधित पूरी जानकारी दी जाएगी.

Monocrystalline और Polycrystalline में क्या अंतर है


दोनों सोलर पैनल को देखने से ही आप बता सकते हैं कि कौन सा Monocrystalline है और कौन सा Polycrystalline है. Monocrystalline पैनल का रंग काला होता है और Polycrystalline पैनल का रंग गहरा नीला होता है रंग के अलावा भी इनमें और काफी अंतर है जो कि आपको नीचे बताए गए हैं.



  • Monocrystalline सोलर पैनल कम धूप में भी काम कर सकते हैं. जिस क्षेत्र में मौसम खराब रहता है,जहां पर ठंड ज्यादा पड़ती है या सूरज कम समय के लिए ही दिखाई देता है. उस क्षेत्र में Monocrystalline सोलर पैनल बहुत ही फायदेमंद होंगे.
  • Polycrystallineसोलर पैनल कम धूप होने पर काफी कम पावर देती है इसीलिए Polycrystalline सोलर पैनल का इस्तेमाल ज्यादा धूप वाले रेगिस्तान वाले क्षेत्र में ज्यादा किया जाता है. जहां पर दिन के समय काफी ज्यादा धूप रहती है.
  • Monocrystalline सोलर पैनल Polycrystalline सोलर पैनल से काफी महंगे होते हैं. इनमें शुद्ध सिलिकॉन का इस्तेमाल किया जाता है.
  • Monocrystalline पैनल की Efficiency Polycrystalline पैनल के मुकाबले काफी ज्यादा होती है .
  • 1000 W पावर बनाने के लिए Monocrystalline पैनल Polycrystalline पैनल के बजाय कम जगह लेते है .
  • Monocrystalline पैनल की Life Polycrystalline पैनल से काफी ज्यादा होती है .


  • तो इन दोनों में थोड़ा ही अंतर है. और इनकी कीमत में भी थोड़ा ही अंतर होता है. जो इन दोनों में ज्यादा अंतर है वही है कि खराब मौसम में भी Monocrystalline  सोलर पैनल काम करते रहते हैं और Polycrystalline सोलर पैनल बंद हो जाते हैं लेकिन अगर आप इन दोनों को सही रूप में चेक करेंगे तो आपको इनकी आउटपुट में वही अंतर मिलेगा अगर Monocrystalline पैनल 20 वोल्ट सप्लाई देगा तो Polycrystalline सोलर पैनल 18 वोल्ट तक पावर सप्लाई देगा. अगर आपके क्षेत्र में धूप अच्छी निकलती है तो आप Polycrystalline सोलर पैनल खरीद सकते हैं यह आपको सस्ते पड़ेंगे और यह आपके क्षेत्र में अच्छी प्रकार काम भी करेंगे और अगर आपके क्षेत्र में धूप काफी कम निकलती है तो आपको Monocrystalline पैनल खरीदनी चाहिए.
    September 16, 2018

    घर के लिए सोलर सिस्टम लगाने का तरीका




    अगर आप किसी कंपनी द्वारा सोलर पैनल का पूरा सिस्टम अपने घर पर लगवाते हैं तो इसमें आपको सिर्फ कंपनी को पैसे देने पड़ते हैं बाकी सारा काम कंपनी खुद करती है. लेकिन अगर आप खुद अपने घर पर सोलर पैनल लगाना चाहते हैं तो इससे आप Installation फीस बता सकते हैं. सोलर पैनल इंस्टॉल करने के लिए आपको इसके बारे में कुछ विशेष जानकारी होनी चाहिए. जो कि हम इस पोस्ट में आपको बताने वाले हैं.



    इस पोस्ट में हम आपको ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम के बारे में बताएंगे कि एक पूरा ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम आप कैसे खुद अपने घर पर लगा सकते हैं.सोलर पैनल को इंस्टॉल करने से पहले आपको कुछ आवश्यक सामग्री की जरूरत पड़ेगी जिनकी मदद से आप सोलर पैनल को अपने घर पर या अपने घर की छत पर लगाएंगे. इस सामग्री की सूची आपको नीचे दी गई है.


    Mounting Structure




    Mounting Structure पर हम अपने सोलर पैनल को सेट करते हैं लेकिन Mounting Structure को भी छत के ऊपर सेट करने के लिए आप Hole Fastener का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर Mounting Structure की टांगों पर आप कंक्रीट डाल कर उसे छत पर अच्छी मजबूती से सेट कर सकते हैं. लेकिन अगर आप कॉन्क्रीट डालकर उसे FIX करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको Mounting Structure को अपनी जरुरत के हिसाब से डिजाइन करना होगा.
    मार्केट में आपको कई प्रकार के Mounting Structure देखने को मिलेंगे लेकिन आप को GI Mounting Structure बनवाना है क्योंकि इस पर किसी प्रकार का कोई जंग नहीं लगता. अगर आप लोहे का Mounting Structure लगवाते हैं तो उस पर जंग लग कर वह बहुत जल्दी खराब हो जाता है. अगर आप बहुत बढ़िया Mounting Structure लगवाना चाहते हैं तो आप इसे किसी Welding की Shop से बनवा कर लाए. और उसकी टांगें भी अपने हिसाब से बनवाएं अगर आपको कॉन्क्रीट डालकर इसे छत पर Fix करना है तो टांगों को थोड़ा बड़ा बनवाएं ताकि यह अच्छे से Fix हो सके.

    कौन सा इनवर्टर खरीदना चाहिए

    इन्वर्टर और बैटरियां आपको अपने घर में चल रहे लोड के अनुसार खरीदना होगा.मान लीजिए आपके घर में चलने वाला लोड 1000 Watt है. और जब सोलर पैनल से बिजली ना मिले और मेन सप्लाई से भी बिजली ना मिले तो आपको लोड कम से कम 3 घंटे तक चलाना है तो आपको कितनी बड़ी बैटरी चाहिए होगी इसकी जानकारी नीचे दी गई है.
    Load = 1000 Watt.
    Inverter Size = ?
    Back Up Time For Batteries = 3 Hours
    इन्वर्टर आपको VA की रेटिंग में मिलेगा इसीलिए हमें हमारे घर के टोटल लोड से 25% ज्यादा रेटिंग का इनवर्टर लेना होगा .
    1000* (25/100) = 250
    1000 + 250 = 1250
    इस हिसाब से आपको 1250 VA का या उससे ज्यादा बढ़ा इनवर्टर खरीदना होगा .

    इन्वर्टर की बैटरी कौन सी खरीदनी चाहिए

    इनवर्टर की बाद में आपको बैटरी खरीदते समय भी अच्छे से ध्यान रखना होगा क्योंकि जब सोलर पैनल से सप्लाई नहीं आएगी तो आपको लोड बैटरी पर ही चलाना पड़ेगा. और जितनी ज्यादा Ah की बैटरी आप खरीदेंगे उतना ज्यादा बैटरी बैकअप आपको मिलेगा. इसके बारे में भी हमने एक पूरी डिटेल में पोस्ट बनाई है उसे आप पढ़ें जिससे आपको पूरी जानकारी हो जाएगी कि आपको कौन सी बैटरी लेनी चाहिए.
    जैसा कि ऊपर हमने माना कि आपको 1000 Watt लोड 3 घंटे तक चलाना है तो आपको कितने Ah की बैटरी लगानी होगी.
    इसका एक छोटा सा सूत्र होता है जिससे कि आप पता लगा सकते हैं कि आपको कितनी AH की बैटरी चाहिए.
    बैटरी बैकअप = Ah X 12 V / 1000
    3 = Ah X 12 /1000
    3×1000 / 12 = Ah
    250 = AH

    तो इस हिसाब 1000 Watt लोड को चलाने के लिए आपको 250 Ah की बैटरी की आवश्यकता होगी. तो इसके लिए आप 150 Ah की दो बैटरियां खरीद लीजिए जिससे आपको 3 घंटे का बैटरी बैकअप मिल जाएगा क्योंकि ऊपर बताए गए सूत्र के अनुसार 3 घंटे में आपकी बैटरी बिल्कुल Discharge हो जाएगी तो बैटरी पूरी तरह से Discharge नए हो इसीलिए हमें 150 Ah की दो बैटरियां खरीदनी होगी.

    बैटरियों कनेक्शन आपको इनवर्टर के हिसाब से करने होंगे अगर आपका इनवर्टर 24v पर काम करता है तो आपको बैटरियों के कनेक्शन Series में करने होंगे और अगर आपका इनवर्टर 12v पर काम करता है तो आपको दोनों बेटियों के कनेक्शन Parallel करने पड़ेंगे.

    सोलर पैनल कौन सा खरीदना चाहिए

    Monocrystalline और Polycrystalline में क्या अंतर है

    सोलर पैनल दो प्रकार के होते हैं. Monocrystalline और Polycrystalline , इन दोनों में काफी अंतर होता है इसके बारे में पहले हमने बताया है आप वह पोस्ट जरूर देखें.Monocrystalline सोलर पैनल कम धूप में भी काम कर सकते हैं. जिस क्षेत्र में मौसम खराब रहता है,जहां पर ठंड ज्यादा पड़ती है या सूरज कम समय के लिए ही दिखाई देता है. उस क्षेत्र में Monocrystalline सोलर पैनल बहुत ही फायदेमंद होंगे. Polycrystallineसोलर पैनल कम धूप होने पर काफी कम पावर देती है इसीलिए Polycrystalline सोलर पैनल का इस्तेमाल ज्यादा धूप वाले रेगिस्तान वाले क्षेत्र में ज्यादा किया जाता है. जहां पर दिन के समय काफी ज्यादा धूप रहती है. तो इन दोनों में से आप अपने क्षेत्र के हिसाब से एक सोलर पैनल खरीद सकते हैं.

    Assemble Solar Panels & Inverter

    अब आपको सोलर पैनल को छत पर लगाना है जिसके लिए आप Mounting Structure का इस्तेमाल करेंगे. और इनवर्टर को बैटरियों के साथ रखेंगे. इनवर्टर को हमेशा किसी मेज पर रखें और बैटरियों को Battery Tray में रखें ताकि यह ज्यादा सुरक्षित रहे और धूल मिट्टी से बची रहे. नहीं तो आपको बैटरियों की लगातार सफाई करनी होगी.

    कनेक्शन करे


    कनेक्शन करते समय आपको अच्छे MC4 Connectors का इस्तेमाल करना होगा जिससे कि सोलर पैनल की तारे अपस में ज्यादा अच्छे से जुड़ सकेगी .सोलर पैनल से तार जोड़ने के बाद में इन्हें इनवर्टर तक ले कर आए और अगर आप सोलर इन्वर्टर पर इसे जोड़ना चाहते हैं तो तारों को सीधे इनवर्टर पर जोड़ दें और अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो तारों को सोलर चार्ज कंट्रोलर पर लगा दे. और फिर बैटरी की तारों को इनवर्टर पर लगा दे. और अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो बैटरी की तारों को इनवर्टर और MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर दोनों पर लगानी पड़ेगी.

    सोलर पैनल और सोलर इनवर्टर के कनेक्शन

    सोलर पैनल से आने वाली Positive तार को इनवर्टर पर दिए गए सोलर पैनल के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है.

    सोलर पैनल और MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर के कनेक्शन

    अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो सोलर पैनल से आने वाली Positive तार को सोलर चार्ज कंट्रोलर पर दिए गए सोलर पैनल के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है.

    सोलर इनवर्टर और बैटरी के कनेक्शन

    बैटरी से आने वाली Positive तार को इनवर्टर पर दिए गए बैटरी के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है. और अगर आपने MPPT सोलर चार्ज कंट्रोलर का इस्तेमाल किया है तो समानांतर (Parallel ) बैटरी से आने वाली Positive तार को इनवर्टर पर दिए गए बैटरी के Positive टर्मिनल पर लगाने हैं और Negative तार को Negative टर्मिनल पर लगानी है.
    कलेक्शन करते समय आपको विशेष ध्यान रखना है कि पॉजिटिव टर्मिनल हमेशा पॉजिटिव के साथ में ही जोड़ें नहीं तो आपका इनवर्टर खराब हो सकता है. सभी कनेक्शन होने के बाद में इनवर्टर की Main Input को सप्लाई के साथ में जोड़ दें. जब मेन सप्लाई उपलब्ध होगी तो आप के उपकरण मेन सप्लाई से चलेंगे और आपकी बैटरी भी चार्ज होगी और जब दिन के समय में सोलर पैनल से बिजली प्राप्त होगी उससे बैटरी चार्ज होगी और हमारे घर के उपकरण चलेंगे.
    September 16, 2018

    ट्रांसफार्मर क्या है ? Working , Types और उपयोग



    ट्रांसफार्मर एक ऐसा विद्युत यंत्र है जो कि AC सप्लाई की फ्रीक्वेंसी को बिना बदले उसे कम या ज्यादा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसका इस्तेमाल उन DC उपकरण पर किया जाता है जोकि AC सप्लाई द्वारा चलाए जाते हैं जैसे की एंपलीफायरबैटरी चार्जर इत्यादि. DC उपकरण ऐसी उपकरण के मुकाबले बहुत कम बिजली से चलते हैं . जैसे कि ऑडियो एंपलीफायर 12 Volt DC से काम करता है इसीलिए ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल कर के पहले AC Volt को 220 Volt से 12 Volt में बदला जाता है और फिर इसे रेक्टिफायर की मदद से AC से DC में बदला जाता है.

    सबसे पहले ट्रांसफार्मर का आविष्कार Michael Faraday ने 1831 और Joseph Henry ने 1832 में करके दिखाया था.आज ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बिजली के हर क्षेत्र में हो रहा है बड़े से बड़े पावर स्टेशन से लेकर एक छोटे से घर में भी ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किसी न किसी रुप में किया जा रहा है और हर जगह ट्रांसफार्मर का सिर्फ एक ही काम होता है बिजली को कम या फिर ज्यादा करना तो आज की इस पोस्ट में हम आपको ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है टाइप्स ऑफ़ ट्रांसफार्मर उच्चाई ट्रांसफार्मर ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते है ट्रांसफार्मर की संरचना बिजली ट्रांसफार्मर ट्रांसफार्मर के भाग के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं.







    • ट्रांसफार्मर के भाग
    • ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं
    • कोर कि सरंंचना के आधार पर
    • फेज की संख्या के आधार पर
    • ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है                   

    • ट्रांसफार्मर के भाग

        ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं और सभी ट्रांसफार्मर में कुछ खास कॉन्पोनेंट होते हैं जो कि छोटे से छोटे और बड़े से बड़े ट्रांसफार्मर में लगाए जाते हैं. लेकिन जैसा कि आपको पता है ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं इसीलिए बड़े ट्रांसफार्मर के अंदर और भी कई कॉन्पोनेंट लगाए जाते हैं. लेकिन जो कंपोनेंट सभी ट्रांसफार्मर में लगे होते हैं उसकी सूची आपको नीचे दी गई है जिससे आपको पता लगेगा कि ट्रांसफार्मर में कौन-कौन से भाग होते हैं और कौन कौन से भाग क्या क्या काम करते हैं.

      Cores -कोर

      ट्रांसफार्मर को Core Form और Shell Form में बनाया जाता है. और जिस ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग को Core के चारों तरफ लगाया जाता है उसे Core Form कहते हैं और जिस ट्रांसफार्मर में Core को वाइंडिंग के चारों तरफ लगाया जाता है तो उसे Shell Form कहते हैं .
      ट्रांसफार्मर की कोर सिलिकॉन स्टील की पत्तियों द्वारा बनाई जाती है और यह कौर ट्रांसफार्मर में होने वाले Iron और Eddy करंट Loss को कम करने के लिए लगाई जाती है. और इन पत्तियों की चौड़ाई 0.35 Mm से 0.75 Mm के बीच में होती है और इन पत्तियों को आपस में वार्निश से जोड़ा जाता है. ट्रांसफार्मर में यह पत्तियां मुख्यतः E, I, L आदि के आकार में लगाई जाती है .

      Coil

      ट्रांसफार्मर की Coil ट्रांसफार्मर के इनपुट और आउटपुट तारों के साथ में जोड़ी जाती है. ट्रांसफार्मर में दो Coil लगी होती है. जो कि एक इनपुट का कार्य करती है और एक आउटपुट का कार्य करती है. Coil को वाइंडिंग भी कहा जाता है .यह वाइंडिंग एक दूसरे से जुड़ी नहीं होती. पहली वाइंडिंग और दूसरी वाइंडिंग एक दूसरे से बिल्कुल अलग होती है और इनकी कोर के चारों तरफ लपेटे की संख्या भी कम और ज्यादा होती है. और प्राइमरी वाइंडिंग से सेकेंडरी वाइंडिंग में सप्लाई म्यूच्यूअल इंडक्शन के कारण जाती है. इसके बारे में नीचे आपको ज्यादा अच्छे से बताया गया है लेकिन पहले इसकी वाइंडिंग के बारे में जान ले.



      प्राथमिक वाइंडिंग -Primary Coil :- ट्रांसफार्मर में जिस वाइंडिंग पर AC इनपुट सप्लाई दी जाती है. उसे प्राइमरी वाइंडिंग या प्राथमिक वाइंडिंग कहते हैं.

      द्वितीय वाइंडिंग- Secondary Coil :- ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग पर आउटपुट के तार लगाए जाते हैं. और इसी वाइंडिंग से ट्रांसफार्मर की आउटपुट मिलती है.या यूं कहें कि ट्रांसफार्मर की जिस वाइंडिंग पर लोड कनेक्ट किया जाता है उसे सेकेंडरी वाइंडिंग कहते हैं.

      Insulated Sheet

      प्राइमरी वाइंडिंग और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच में एक सीट लगाई जाती है ताकि किसी प्रकार का कोई भी शार्ट सर्किट में हो. और ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग पर किसी प्रकार का कोई नुकसान ना हो. इसीलिए यह वाइंडिंग के बीच में इंसुलेटेड सीट लगाई जाती है .

      Conservator Tank


      जैसा कि पहले हमने बताया ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं उन्हीं के आधार पर उनके अंदर कॉन्पोनेंट लगाए जाते हैं इसीलिए थ्री फेज ट्रांसफार्मर में यह टैंक होता है जिसके अंदर तेल डाला जाता है और यह ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने का काम करता है क्योंकि थ्री फेज ट्रांसफार्मर काफी बड़ा होता है इसीलिए वह गर्म भी बहुत ज्यादा होता है इसीलिए ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए तेल का इस्तेमाल किया जाता है और इस टैंक में ट्रांसफार्मर के लिए तेल भरा जाता है .

      Oil Level Indicator

      Conservator Tank में ऑयल भरा जाता है लेकिन इसे मापने के लिए इसके अंदर 1 मीटर लगाया जाता है जो कि टैंक में भरे ऑयल की मात्रा को बताता है. और यह वेल मीटर इंडिकेटर टैंक के ऊपर ही लगाया जाता है 

      Bushing

      Bushing का इस्तेमाल ट्रांसफार्मर में Live Conductor और ट्रांसफार्मर की बॉडी को इंसुलेट करने के लिए लगाया जाता है. और यह ट्रांसफार्मर के सभी टर्मिनल पर लगाया जाता है और इसका इस्तेमाल थ्री फेज ट्रांसफार्मर में ही किया जाता है .

      Radiator Fan

      रेडिएटर का इस्तेमाल ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए किया जाता है जैसे गाड़ियों में भी गाड़ियों के इंजन को ठंडा रखने के लिए रेडिएटर का इस्तेमाल होता है उसी प्रकार ट्रांसफार्मर में भी एक रेडिएटर लगाया जाता है लेकिन यह रेडिएटर सिर्फ बड़े ट्रांसफार्मर में ही लगाया जाता है.

      Oil Filling Pipe

      ट्रांसफार्मर में तेल भरने के लिए ट्रांसफार्मर के टाइम पर एक पाइप लगाया जाता है जिसे Oil Filling Pipe कहते हैं और इसी की मदद से ट्रांसफार्मर में तेल भरा जाता है .
      तो यह कुछ महत्वपूर्ण भाग ट्रांसफार्मर के होते हैं जो कि लगभग सभी ट्रांसफार्मर में आपको देखने को मिलेंगे लेकिन यहां पर मैंने कुछ और भी कंपोनेंट बताए हैं जो कि सिर्फ बड़े ट्रांसफार्मर में है आपको देखने को मिलेंगे यह ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

      Transformer कितने प्रकार के होते हैं?

      TRANSFORMER OF CLASSIFICATION In Hindi ? ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं जहां पर इनका इस्तेमाल किया जाता है उसी आधार पर ट्रांसफार्मर को बनाया जाता है जैसे कि अगर हमें घर में बैटरी का चार्जर बनाना है तो उसके लिए हमें स्टेप डाउन यानी के वोल्टेज को कम करने वाले ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करना पड़ेगा और अगर कहीं पर हमें इनवर्टर बनाना है तो वहां पर हमें स्टेप अप ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करना पड़ेगा या फिर हमारे घर में इस्तेमाल होने वाला स्टेबलाइजर में स्टेप अप ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है तो इसी लिए ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं जिनकी सूची नीचे दी गई है .

      आउटपुट वोल्टता के आधार पर

      1.स्टेप अप ट्रांसफार्मर


      जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर अधिक आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है उसे स्टेप अप ट्रांसफार्मर कहते हैं.ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग के मुकाबले सेकेंडरी वाइंडिंग पर ज्यादा Coil के Turn या लपेटे होती हैं. और इसका इस्तेमाल स्टेबलाइजरइनवर्टर इत्यादि में किया जाता है.

      2.स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर


      जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को घटाकर कम आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है उसे स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर कहते हैं.इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है क्योंकि DC सप्लाई से चलने वाले बहुत सारे उपकरण मार्केट में है और इसे हम घर में आने वाली AC सप्लाई से चलाने के लिए ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करते हैं जो कि 220 Volt AC को घटा कर उपकरण के अनुसार कर देता है जैसे कि ऑडियो एंपलीफायर को 12 Volt DC सप्लाई की जरूरत होती है इसलिए हमें स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करके 220 Volt को 12 Volt में बदलना पड़ता है और फिर उसे AC TO DC कनवर्टर से DC सप्लाई में बदलना पड़ता है . इसीलिए इस ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है .

      कोर कि सरचना के आधार पर


      1.शेल टाइप ट्रांसफार्मर :-


      यह तथा आकर की पतियों को जोडकर बनाया जाता है इसमें तीन लिब पड़े होते है जिसमे से एक लिब पर दोनों वाइंडिंग की जाती है वाइंडिंग बीच वाले लिब पर की जाती है जिसका क्षेत्र दोनों साइड वालो से दो गुना होता है कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग कोर के नजदीक की जाती है और ज्यादा वोल्टेज वाली वाइंडिंग कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग के ऊपर की जाती है ताकि इन्सुलेशन आसानी से किया जा सके इसमें मेगनेटिक फ्लक्स के लिए दो रास्ते होते है इसे हम कम वोल्टेज के लिए यूज करते है.

      2.कोर टाइप ट्रांसफार्मर :-

      यह ट्रांसफार्मर आकार सिलिकोन स्टील की पतियों को इन्सुलेट करके जोड़ कर बनाया जाता है इसकी बनावट आयताकार रूप में होती है यह इसके चार लिब होते है जिनमे से दो आमने सामने वाले लिबो पर वाइंडिंग की जाती है इसमें मेगनेटिक फ्लक्स के लिए केवल एक ही रास्ता होता है यह हाई वोल्टेज के लिए यूज किया जाता है.

      फेज की संख्या के आधार पर





      1.सिंगल फेज ट्रांसफार्मर :-

      सिंगल फेस AC.सप्लाई पर कार्य करने वाला ट्रांसफार्मर होता है यह ट्रांसफार्मर सिंगल फेज की वोल्टेज को कम या ज्यादा करता है उसे सिंगल फेज ट्रांसफार्मर कहते हैं इसमें दो वाइंडिंग होती है प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग प्राथमिक वाइंडिंग में सिंगल फेज विद्युत सप्लाई दी जाती है और द्वितीयक वाइंडिंग में सिंगल फेज विद्युत सप्लाई स्टेप डाउन या स्टेप अप के रूप में ली जाती है.

      2.थ्री फेज ट्रांसफार्मर :-

      थ्री फेज AC. सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफार्मर को थ्री फेज ट्रांसफार्मर कहते हैं इसमें तीन प्राथमिक तथा तीन द्वितीयक वाइंडिंग होती है यह सेल या कोर टाइप के होते हैं इनका उपयोग 66, 110, 132, 220, 440 KVA स्टेप अप करके ट्रांसमिट करने के लिए किया जाता है और जो डिस्ट्रीब्यूशन प्रणाली में जो ट्रांसफार्मर होते है वे थ्री फेज ट्रांसफार्मर होते हैं और आजकल थ्री फेज ट्रांसफार्मर का ही अधिक प्रयोग होता है.

      ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है

      ट्रांसफार्मर म्यूच्यूअल इंडक्शन के सिद्धांत पर काम करता है. और ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग होती है जिसमें से एक वाइंडिंग Electromotive Force और दूसरी वाली Magnetic Field पर काम करती है.

      जब पहली वाइंडिंग में AC सप्लाई दी जाती है तो उसके चारो तरफ एक मैगनेटिक फील्ड या चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है जिसको Electromotive Force कहते है।

      और जब दूसरी Coil इस मैग्नेटिक फील्ड के अंदर आती है तो दूसरी Coil में इलेक्ट्रॉन बहने लगते हैं और इस क्वाइल के सिरों पर हमें AC सप्लाई मिल जाती है . लेकिन ट्रांसफार्मर की आउटपुट सप्लाई इसकी इनपुट के ऊपर निर्भर करेगी.

      ट्रांसफार्मर को सप्लाई से जोड़ने से पहले टेस्ट करें

      अगर आप कहीं पर ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल करना चाहते हैं चाहे वह सिंगल फेज ट्रांसफार्मर हो या फिर थ्री फेज ट्रांसफार्मर हो इसका कनेक्शन करने से पहले आपको कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है ताकि आपका ट्रांसफार्मर सही तरह से काम करें और आपको किसी प्रकार की कोई हानि ना हो.

      इंसुलेशन टेस्ट

      इंसुलेशन को टेस्ट करने के लिए आपको दोनों वाइंडिंग के बीच में मैगर का इस्तेमाल करना है और दोनों वाइंडिंग के बीच का प्रतिरोध पता करना है.

      अर्थ कंटीन्यूटी टेस्ट

      इस टेस्ट को करने के लिए आपको टेस्ट लैंप का इस्तेमाल करना होगा इसके लिए टेस्ट लैंप की एक तार को ट्रांसफार्मर की बॉडी के साथ जोड़ दें और दूसरी तार को फेज की तार से जोड़ दें अगर लैंप जलता है तो इसका मतलब ट्रांसफार्मर की अर्थिंग बिल्कुल सही तरह से काम कर रही है.

      ट्रांसफार्मर आयल टेस्ट

      इस टेस्ट में ट्रांसफार्मर के तेल की जांच की जाती है इस टेस्ट में ट्रांसफार्मर की डाई इलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ को मापा जाता है इस के लिए ट्रांसफार्मर आयल टेस्टिंग उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है. और जब कॉटन की टेप को 120 डिग्री पर 48 घंटे तक ट्रांसफार्मर के तेल में रखा जाता है अगर इसकी विशेषता में कोई फर्क ना आए तो इसका मतलब ट्रांसफार्मर का तेल अच्छी क्वालिटी का है.

      शार्ट सर्किट टेस्ट

      इस टेस्ट के दौरान यह पता लगाया जाता है कि प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग आपस में स्पर्श तो नहीं हो रही है. इसके लिए मेगर का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें मेगर के टर्मिनल को प्राइमरी वाइंडिंग के सिरे से जोड़ते हैं. तथा मेगर के दूसरे टर्मिनल को सेकेंडरी रिवाइंडिंग से जोड़ते हैं और मेजर को घुमाने पर सुई 0 रीडिंग देती है तो दोनों वाइंडिंग आपस में शार्ट है यदि सुई इंनफिनिटी पर है तो वाइंडिंग शार्ट नहीं है.

      Thursday, September 13, 2018

      September 13, 2018

      गूगल बंद करने जा रहा है अपना Gmail Inbox, जानें क्युं ?



      गूगल ने कुछ ही समय पहले जीमेल का नया अवतार पेश किया था। अब जीमेल के फ्यूचर इनबॉक्स को लेकर खबरें सामने आने लगी हैं। इसी बीच गूगल ने मार्च 2019 तक अपन Inbox By Gmail को बंद करने की घोषणा कर दी है। ऐसे में देखा जाए तो वर्ष 2014 में लॉन्च हुए गूगल इनबॉक्स को 5 साल बाद बंद किया जा रहा है। गूगल ने यह दावा किया है कि वो सभी यूजर्स के लिए नए ईमेल सॉल्यूशन पर फोकस करेगा।
      जानें Inbox By Gmail के बारे में:
      इसे अक्टूबर 2014 में पेश किया गया था। इसका मुख्य फोकस स्मार्टर इमेल मैनेजमेंट एक्सपीरियंस था। इसमें बंडल ग्रुपिंग रिसिपेंट्स, स्टेटमेंट्स और मैसेज से संबंधित फीचर्स दिए गए हैं। इसके अलावा इसमें इमेल स्नूजिंग, फॉलो-अप समेत कई फीचर्स मौजूद हैं। लेकिन जब गूगल ने जीमेल को एक नया लुक दिया तो इसके इनबॉक्स में कई नए फीचर भी एड किए गए। लेकिन अब गूगल केवल जीमेल को बेहतर बनाने पर फोकस करना चाहती है और इसी के चलते Inbox By Gmail को बंद कर दिया जाएगा।
      हालांकि, अभी यूजर्स के पास कुछ महीने है जीमेल इनबॉक्स इस्तेमाल करने के लिए। गूगल अपने यूजर्स को एक ट्रांजिशन गाइड उपलब्ध करा रहा है जिससे यूजर्स नए जीमेल में आसानी से स्विच कर पाएंगे।
      इससे पहले Yahoo Messenger को 17 जुलाई को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था। याहू ने कहा कि यूजर्स अपने सारे मैसेज 6 महीने तक डाउनलोड कर सकेंगे। कंपनी Yahoo Messenger की जगह एक नया इंस्टैंट मैसेजिंग एप Squirrel ला रही है। इस नई एप की बीटा टेस्टिंग के लिए यूजर्स अभी से अप्लाई कर सकते हैं। याहू मैसेंजर यूजर्स को अब Squirrel पर रिडायरेक्ट किया जा रहा है।
      जानें क्यों बंद हुआ Yahoo:
      Yahoo Messenger की वजह से ही वॉट्सऐप, फेसबुक मैसेंजर जैसे चैटिंग सर्विस को लोग पसंद करने लगे हैं। इसी की वजह से चैटिंग की दुनिया में क्रांति आ गई और इतने सारे मैसेजिंग एप्स और सेवा की शुरुआत हुई। 2000 के शुरुआती वर्षों में इटंरनेट का इस्तेमाल करने वाला हर यूजर Yahoo Messenger का इस्तेमाल किया करता था। आखिर, ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से Yahoo Messenger को बंद करना पड़ा।